कमल ने दिव्यांग से पाई जीत’ भविष्य लिख रहे हैं पैर

शंकर यादव मोगा: आज के जमाने में कई लोग तो ऐसे भी हैं जो शरीर से पूरी तरह परफेक्ट होते हुए भी मेहनत किए बिना बड़े-बड़े मुकाम पाना चाहते हैं लेकिन कुछ लोग दिव्यांग होते हुए भी अपनी मंजिल को पाने के लिए लगन से जुट जाते हैं। किसी ने सही कहा है कि दिव्यांग शरीर नहीं बल्कि सोच है। यह साक्षात उदाहरण जिला लुधियाना के गांव सहोली निवासी दिव्यांग 13 वर्षीय कमलजीत सिंह पर सटीक बैठती है। दोनों हाथों की नाड़ियां ब्लॉक होने के कारण वह बिल्कुल काम नहीं कर सकता। उसके एक पैर की अंगुलियां ही नहीं है। दूसरे पैर का एक अंगूठा व दो अंगुलियां ही हैं। इसी से वह पढ़ाई के शौक को पूरा करने में जुटा है।
पत्रकारों से अंग्रेजी में बात करते हुए कहता है कि मैं चाहे एक अंगूठे व दो अंगुलियों से सातवीं की पढ़ाई कर रहा हूं, लेकिन इस पैर से लिखने की ताकत टीचर जसप्रीत कौर ने दी। साहसी दिव्यांग कमलजीत सिंह ने बताया कि जब सरकारी प्राइमरी स्कूल सहोली में दाखिला लिया तो सभी ने पूछा, तुम कैसे लिख पाओगे तब मैडम जसप्रीत कौर ने हौसला बढ़ाते हुए कहा कि तुम पैर से भी लिख सकते हो, फिर क्या था मैडम के प्रशिक्षण से कॉपी व स्लेट पर लिखना शुरू कर दिया।
दोस्ती बनी मिसाल
दिव्यांगता में उसकी दोस्ती भी मिसाल है, क्योंकि वह चल-फिर व खुद खा भी नहीं सकता। केवल एक जगह पर किसी की मदद से बैठ सकता है। ऐसे में उसका बचपन का दोस्त सन्नी शुरू से उसके साथ साये की तरह रहता है। वहस्कूल में उसे उठाकर चलता है, बिठाता है और अपने हाथों से खाना खिलाता है।
पांचवी में अच्छे अंक के बाद बन रहा ‘गोल्डन’ भविष्य
अध्यापक गुरप्रीत सिंह के अनुसार कमलजीत सिंह के पांचवीं बोर्ड की परीक्षा में अच्छे अंक आए। इस पर लुधियाना के मुल्लांपुर के गोल्डन अर्थ कॉन्वेंट स्कूल के प्रबंधन खुद उसके घर गए और उसकी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाने की जिम्मेदारी ली। पहले तो इस बात पर उसके परिजनों ने इंकार कर दिया, लेकिन स्कूल प्रबंधकों के बार-बार कहने पर कमलजीत सिंह का इस स्कूल में छठी कक्षा में दाखिला करवाया। अब वह सातवीं कक्षा में पढ़ता है और उसका दोस्त सन्नी जोकि उसकी मदद करता है को भी यहां दाखिला दिया। स्कूल प्रबंधन ने उसकी भी सारी पढ़ाई का खर्च उठाया ताकि दिव्यांगता कमलजीत सिंह के शौक में बाधा न बनें।
जज्बे को लोग करते हैं सलाम
कमलजीत सिंह की मां प्रीत कौर व पिता संतोख सिंह जोग्रिलों व गेट बनाने की मजदूरी करते हैं, ने बताया कि बेटा बचपन से ही दिव्यांग है। बहुत इलाज करवाया, कई आप्रेशन करवाने के बाद अब वह बड़ी मुश्किल से खड़े होने के योग्य बना। बेटे के पढ़ने का जज्बा समाज में हमारा नाम ऊंचा कर रहा है। उसके द्वारा पैर के अंगूठे व अंगुलियों से लिखने की भावना को देखने लोग घर में आते हैं और उसकी मेहनत को सलाम करते हैं।